बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

नाटकक इतिहास आ सिनेमाक वर्तमान

नाटकक इतिहास आ सिनेमाक वर्तमान

आलेख के विषय अईछ नाटकक इतिहास आ सिनेमाक वर्तमान, ई विषय के हम अपन मातृभाषाक 

स्नेहक कारण मात्र मैथिलि नाटक के इतिहास आ मैथिली सिनेमाक वर्तमान दीस घुमा क लय जा 

रहलौ I हमर बाल्यावस्था पश्चिम बंगाल में हूगली जिला के रिशरा में बीतल I जतय मिथिला 

मैथिलि के संस्कृतिक धरोहर के सजा क रखवाक प्रयाश सबदिना होइत रहल I ओना कोलकाता सदेव  
स मिथिला मैथिली साहित्य आ संस्कृति के समृद्ध में अपन निःस्वार्थ योगदान लेल चर्चित रहल आ 

तकर प्रमाण जे कोलकाता बाबा नागार्जुन, बाबु साहेब चौधरी, पी एन सिंह आदि मिथिलाक विभूति 

सब लेल सब स बेसी प्रिय स्थान रहल I

 चुकी इ आलेख नाटकक इतिहास आ सिनेमक वर्तमान पर लिखवाक अईछ ताई विषय पर आयबा 

स पहिने इ संक्षिप्त बात लिखनौ कारण कोनो कला वा संस्कृति के विकाश में समाजक रूचि के 

महत्वपूर्ण योगदान होइत छई I मैथिली नाटक के सहेजब आ ओकरा उमंग और उत्साह के संग 

दर्शक तक पहुँचेबाक जे जोश हम कोलकाता के मैथिल समाज में देखल तकर स्मृति आई तक हमर 

मानष पटल पर छाप छोराने अईछ I हम इ बात के पूर्णतया नई काटब जे इ उत्साह मात्र 

कोलकाता के प्रवाशी मैथिल में छलैन बल्कि अपेक्षा कृत स्थानीय मैथिल इ रूचि प्रवाशी मैथिल में 

सदेव बेसी देखल गेल I

गाम स सदेव अगाध सिनेह रहल और तकर कारण जे गाम छुट्टी-छाटी में मौका भेटिते जाईत 

रहलौ,और जेना सब गाम सब के पावैन-तिहार में कोनो ने कोनो कार्यक्रम के आयोजन होइत रहल 

हमरो गाम में समय समय पर गीत-नाद, नाटक आदि के आयोजन बहुत नीक स होइत रहल मुदा 

आब परिवर्तन के इ नव युग में मैथिलि नाटक के कतौ ने कतौ अपमानित होईत देख रहलौ I 

जतs नाटक के माध्यम स समाजक परिस्थिती आ समाजक व्यवस्था के प्रस्तुती स समाज में 

प्रत्यक्ष प्रभाव परैत छल तकर कमी आब बहुत बेसी बुझाना जा रहल I नाटक सामाजिक बुराई स 

प्रभावित समाज के टीस देवाक सहज साधन मानल जा सकैत अईछ, आ संगही सामाजिक विकाश 

लेल सांस्कृतिक धरोहर के सहेजबाक एकटा महत्वपूर्ण करी सेहो मानल जा सकैत अईछ I


जेना उदहारण लेल स्व हरिमोहन झा द्वारा लिखल “खटर कक्का के तरंग” स जहाँ मैथिल समाज 

जे बौद्धिक क्षमता के प्रस्तुती होइत अईछ ओतई सरलता संग मिथिलाक आम जन भावना के ह्रिदय 

स्पर्शी संस्कारक अनुभव होइत अईछ I तहिना बहुत राष नाटक दहेज़, छुवा-छूत, कर्मकांड, 

बेरोजगारी,महिला उत्पिरण आदि विषय पर लिखल गेल अईछ जकर कुशल प्रस्तुती के प्रभाव समाज 

पर परल मुदा आब धीरे धीरे नाटक में रूचि लोक सब में कम भेल जा रहलैन I और अगर यह 

दशा रहल त कहीं नाटक सच में इतिहास नई बनी जाई I         


आब मैथिली सिनेमा के वर्तमान दिश सेहो चलू I लगभग ७ कड़ोर मैथिल के जनसंख्या पर मैथिली 

सिनेमाक वर्तमान स्थिती जग जाहिर अईछ I आखिर तकर की कारण? वर्तमान युग में कोनो भी 

भाषा आ सांस्कृतिक विकाश लेल सिनेमा के सर्वोच्च साधन माईन सकैत छी I अते प्राचीनतम भाषा 

आ संस्कृती रहितो मैथिली के पहिन सिनेमा १९६५ में फानी मुजिमदार द्वारा निर्देशित हरिमोहन 

झा के कथा “कन्यादान” पर आधारित छल I तकर बाद “ममता गाबई गीत” १९८४-८५ में आयल I 

जेकरा की मैथिलि सिनेमा के सुरुवाती दौर मानल जा सकैत अईछ I इ सिनेमा में गीता दत्त, महेंद्र 

कपूर, सुमन कल्यानपुरी सनक दिगज अपन आवाज के जादू स सिनेमा में चार चाँद लगेला I मुदा 

तकर बाद फेर स मैथिली सनेमा में ग्रहण लैग गेल I बिच में एक आध टा डवींग सिनेमा आयल 

जकर कोनो मोजर नई I लगभग डेढ़ दशक लेल फेर स मैथिली सिनेमा हरा गेल और तकर प्रभाव 

जे बाहरी संस्कृति आ संस्कार के मिथिला क्षेत्र में सिनेमा के माध्यम स प्रवेश करवाक एकटा 

निर्विरोध स्थान भेट गेल I आब चाहियो क मैथिली सिनेमा के वर्तमान में अपन स्थान सुनिश्चित 

करवाक लेल बहुत कठीन प्रयाश के जरुरत I ओना १९९९ के बाद फेर किछु नव सिनेमा “सस्ता 

जिनगी महग सिनुर”, “कखन हरब दुख मोर”, “सुनुरक लाज”, “दुलरुवा बाबु”, “आऊ पिया हमर 

नगरी”, “सजना के अंगान में सोलह सिंगार” आदि के प्रदर्शन स किछु आश जागल परन्तु निर्माता 

लोकिन के उचित लाभ आ उत्साहित दर्शक के कमी अखनो बुझना जा रहलैन I


मैथिली के समृद्ध इतिहास आ उपेक्षित वर्तमान के सुधि लेबे बला कियो नई I बिहार राज्य के 

एकमात्र संबिधानिक भाषा मैथिली के कला और संस्कृती के विकाश लेल राज्य सरकार के पहल 

करवाक चाही I मैथिली सिनेमा के प्रोत्शाहित करवाक लेल मैथिली सिनेमा के कर मुक्त करवाक 

चाही I भारत सरकार द्वारा जेना आन आन भाषा में दूरदर्शन चैनल देल गेल अईछ तहिना दूरदर्शन 

मैथिली के प्रशारण सेहो सुरु करवाक चाही I मिथिला क्षेत्र के सिनेमा वितरक एवं सिनेमा हॉल 

मालिक के सेहो मैथिलि सिनेमा के स्थान दबा में उत्साह देखेबाक चाही I मैथिली सिनेमा के निर्मान 

लेल सरकार स आर्थिक सहयोग आ सुविधा के व्यवस्था हेबाक चाही I सिनेमा निर्माता लोकिन के 

नीक आ प्रभावी सिनेमा बनेवाक लेल भाई-भतीजा वाद परंपरा स बाहर आइब नीक कलाकार संग 

सिनेमाक निर्मान करवाक चाही I                   


 और अई सब स बेसी महत्वपूर्ण जे स्वेंग मैथिल अपन कला आ संस्कृत के संग्रक्षण लेल सजग 

होइथ. प्रत्येक गाम में प्रत्येक वर्ष कोनो खास मोका पर एकटा नाटक के मंचन जरुर हुवे, जाई स 

मैथिली नाटक जे इतिहास बनी रहल तकर रक्षा होई, नव आ नीक कलाकार सब नाटक के माध्यम 

स बहरैथ और वर्तमान युग में सिनेमाक माध्यम स अपन और अपन मातृभूमि के नाम रौशन करैथ 

I

पंकज झा


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