मंगलवार, 13 अगस्त 2013

अज्ञानी हम ज्ञान क्षीर स परा रहल छी ,
नै बुझल ओ भाब भ्रम में हरा रहल छी , 
हम कहबि संतान हे माँता आहाँ मैथिलि,
अपने हाथे अपन धरा के हरा रहल छी। 

सदबुधि दय रक्षा करू हे माँ ------ पंकज

शनिवार, 20 अप्रैल 2013


गजल

प्रीत लागल आहाँ के झलक देखि कs ,
आहाँ बुझी ने बुझी  आहाँ ई बुझु,
भने बाजी ने बाजी आहाँ हे प्रिये,
बात हमहूँ इसरा में बुझिए गेलौ।

हाथ आंचर पकरने ई कहिए देलक,
आहाँ हमरा धीरज के परईख लेने छि,
आहाँ तइयो नई हमरा कही हे प्रिये,
हम बुझब आहाँ आरो व्याकुल छि।

तृप्त पुलकित ओ खनहन नयन देखि कs
मुग्द मादक मधुर मन बनाइये देलऊ,
आहाँ चाहे भले ना कही हे प्रिये,
हमर मोनक ओ धधरा जगाइए देलऊ।  

पंकज झा