शनिवार, 5 जुलाई 2014

आईख में नार ढब ढाबा जाइए,
बाट में पैर लरखरा जाइए,
सोचि चिंता करी हम आर कते,
देखि कलह मोन हरा जाइए।

फुइट रहला सदा समांग हमर,
की कहु हम अइछ दोख ककर,
लड़ी रहल हम छी आपश में कते,
मजा लय फरीखवा पड़ा जाइए।

की कहु सोची क की आयल रही,
मोन में ठाईंन क किछु लयाल रही,
करीतौ सेवा मिली माँ मैथिली के,
नई जॉइन के नजइर लगा जाइए।

एहनो नई छई की हम अपाटक छी,
अपनहि लेल हम घातक छी ,
ओकरा की फर्क जे हम रही आहिन,
ओ त मलफाई के उड़ा जाइए।

हम अखनो भरोश नई छोरलौ,
अपन प्रतिबद्धता के नई तोरलौ,
छी संतान माँ वैदेही के,
आशक दीप क्यो जड़ा जाइए।

"पंकज"