शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

श्रृंगार करू श्रृंगार करू माँ मैथिलि के श्रृंगार करू,
हे मैथिल जन श्रृंगार करू...
नई चाही हिनका आभूषण, नई चाही कोनो बलि अर्पण, 
उठू जागु बॉन्हु अपन शिखा के, अपमानक प्रतिकार करू,
हे मैथिल जन श्रृंगार करू.

पंकज 
नई करबऊ आब लाज़,
गगन में गूंजी रहल आवाज़,
रे आब त मिथिले चाही,
बुझलकइ नवतुरिया आब नाज,
पहिरती माँ मैथिलि ताज,
रे बऊवा आबई जाही.

करतइ जे अपमान,
से भ जो आब तौ साबधान,
जागल छई मैथिल मीता,
इ धरती के मान,
बढ़ेली जगत केर अभिमान,
ओ कहबि हमर सीता.

भेलइ भंग आब मोह,
ह्रदय के कय देलक पनिसोह,
देखलीयई बहुत तमसा
अपन घर तौ जो,
निर्देईया आर ने हमरा खो
नई तोरा स कोनो आशा.

पंकज
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