गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

लागत मौन आब चउके पर......

लागत मौन आब चउके पर......

आइब गेल भाई फेर चुनाव,
मोछ पिजाऊ आर खेलु दाऊ,
काका भैया आहू आऊ,
पान सुपारी खूब दबाऊ,
फाईर फाईर पुरिया के खाऊ,
लागत मौन आब चउके पर......

निकल गेल बरसाती बेंग,
परल छल इ कतौऊ ढेंग,
अखन चलई आइछ देखू रेंग,
जमी कय बना रहल आइछ गेंग,
चिन्ह लीय ई केहन बेंग,
लागत मौन आब चउके पर......

अते दीन जे दादा छल ओ,
नीच कर्म पर सदा छल ओ,
खून चूस पर मादा छल ओ,
आई तेवर में आधा छल ओ,
देखब सभ्य किछु जादा छल ओ,
लागत मौन आब चउके पर......

बेर-बेर आबई आइछी गाम,
बगल में छुरी मुह में राम,
झुकी झुकी करयाई सबके सलाम,
अते दीन जे छल बदनाम,
कोना नाचैया ई आही ठाम,
लागत मौन आब चउके पर......

खाऊ-पियु आर दीयौ वोट,
नई बुझी आई हक़ के छोट,
छूटी ने जाई आहाँ एको गोट,
चिन्ह लीय ककरा में खोट,
नई देखब के कते मोट,
लागत मौन आब चउके पर......

पंकज

बुधवार, 1 सितंबर 2010

aaj mai sochta hun...


आज मैं सोचता हूँ,  

आज मैं सोचता हूँ की वो दिन फिर वापस जाए, 

फिर वेसे ही मौज मनाए, 

तितली के पिछे हम जाए, 

फूल के महको मे खोजाये, 


तब तो हम थे धूम मचाते, 

समय बिताया हसते गाते, 

सखाओ के संग बात बनाते, 

समझ ना पाया दिन केसे जाते, 


ये केसा दिन आया देखो, 

खुद भि समझ ना पाया देखो, 

कहा है जाना क्या करना है, 

अब तक समझ ना पाया देखो, 

जीवन के इस रंग मंच पर, 

अपना पात्र निभाया देखो, 


मन चंचल को माना लिया है, 

उसको सब कुछ बता दिया है, 

संभव ना है पिछे जाना, 

सोर्य है आगे बढ़ते जाना, 

बीते कल मे क्या रखा है, 

आने वाला ही सच्चा है, 

जंग अभी बहुत बाकी है, 

पिछ्ला तो यादे काफ़ी है,  

पिछला तो यादे काफ़ी है. 


पंकज  

शनिवार, 28 अगस्त 2010

yo mithila wasi jagu yo

यो मिथिला वासी जगु यो
आऊ आडंबर स आगू यो
संकुचित विचार के त्यागु यो
यो मिथिला वासी जगु यो

अई राजनीत कंठक सासरी
मइर रहल समाज लगा फसरी
निर्लाजा सब स सिखु यो
यो मिथिला वाशी जागु यो

दुनिया कत स कत गेल
हम अखनहु धैर पछुवायल छि
संकुचित विचार स घायल छि
आबो ता नींद स जगु यो

माँ सीता के र इ धरती में
विद्यापति के र इ परती में
अपन कर्मठता स आबू
मिली हरियर बाग़ बनाबू यो
यो मिथिला वासी जगु यो

पंकज