गुरुवार, 22 सितंबर 2011

भाई रे अना नै परो

भाई रे अना नै परो,
दहेज़ मुक्त मिथिला चाही त,
दहेज़ मुक्त मैथिल बैन जो, 
भाई रे अना...............

जों ललचेवे टका तू लेवे,
जिनगी बनी जेतौ पनिसोह,
अपनों कनवे कनियो कनतौ,
ताई अंतरात्मा के नै जरो,
भाई रे अना.............

कनिया स वियाह कर मनिया(money) स नई,
मनिया नाचेताऊ कनिया साजेताऊ,
मनिया के मोह स अपना आप के बचो, 
कनिया के स्नेह में तोउ डूबी जो ,
भाई रे अना.............

जिनगी रहलौ त पाई बड कमेवे,अपनों उरेबे हमरो बजेबे,
जाऊ कियो कहतु ससुर वाला पाई छैन,तखन कहइ ककरा मुह देखेबे,
अखनो छऊ मोका आब त सुधईर जो,
कलर के ठार कर गीत गुण गुणों,
भाई रे अना............

बाबु के मोन छैन लाथ नई ई करइ,
एक गलती स जिनगी नई ई सरेइ,
तोहर जिनगी छऊ तू बाबू के बूझो,
उज्वल भविष्य के अपने नई सुतो,
भाई रे अना नै परो,
दहेज़ मुक्त मिथिला चाही त,
दहेज़ मुक्त मैथिल बैन जो, 
भाई रे अना...............

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

की आहो रामा.....

कल जोरी करै छि हे मैया..
विनती हमरो सुनियौ ..
की आहो रामा...
मिथिला के दियौ एअहन सपूत हे जननी..२
मोन में ने छल होई ओकरा..
वाणी में बल होई जकरा...
की आहो रामा.....
भाई के सिनेह स मोन होई पुष्ट हे जननी....२
भ्रम स ग्रसित नै हुवे..
श्रम स ओ अम्बर छुवे..
की आहो रामा.....
बुद्धि विवेक स लुटे सब के मोन हे जननी..२
ज्ञानी में मंडन मिश्र हो..
ख्याति में विद्यापति हो..
की आहो रामा..
मिथिला के हुवे ऊ श्री कृष्ण हे जननी..2

सोमवार, 2 मई 2011

उपदेश द क आन के ग्यानी बनल बड सहज छई,
चुन-मून के बनल घोशला के टोइंग देव बड सहज छई,
जीवन के अंतर काल में जा किछु केलौ असहज त,
बुझाव जे जीवन सफल अई, फेर मोक्ष सेहो सहज छई,

पंकज 

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

हाथ रिशावाला....

एक श्रमिक को मैंने देखा,
लुंगी, गंजी, कंधे गमछा ,
हाथ में घंटी टन-टन करता,
चला जा रहा मतवाला सा,
नहीं किसी की फिकर वो करता, 
कोई भले ही कुछ भी कहता, 

इस कर्म को क्या मै कहता?
कर रहा है ये श्रम या सेवा?
नहीं है इसको फल की चिंता, 
खुद पैदल पर मुझे वो रथ पर,
ले केर चला जहा है जाना,
बात वो मेरी एक ना माना,

कहा यही है मेरा जीवन, 
इसी से चलता मेरा परिजन,
कैसे छोरुं क्यों भूलू मै,
मेरी तो पहचान यही है,
श्रम मेरा सम्मान यही है,
मेरा तो अभिमान यही है,

श्रम को सेवा समझ के करना,
मैंने सिखा उससे वरना,
दुनिया ये चलती है कैसे?
निश्चय ही है श्रमिक भी ऐसे,
नहीं तो किशको कोण पूछता?
सब अपना ही दर्द ढूंढता, सब अपना ही दर्द ढूंढता ...........

पंकज 

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

सत सत प्रणाम.......

जई धरती पर हम जन्म लेनौं,
जकरा  आँचर में ठाढ़ भेलौं,
जकरा कोरा में खेलाई छलौं,
जकरा आँगन में पैघ भेलौं,
ओई जननी केर सत सत प्रणाम, सत सत प्रणाम, सत सत प्रणाम,