बुधवार, 1 सितंबर 2010

aaj mai sochta hun...


आज मैं सोचता हूँ,  

आज मैं सोचता हूँ की वो दिन फिर वापस जाए, 

फिर वेसे ही मौज मनाए, 

तितली के पिछे हम जाए, 

फूल के महको मे खोजाये, 


तब तो हम थे धूम मचाते, 

समय बिताया हसते गाते, 

सखाओ के संग बात बनाते, 

समझ ना पाया दिन केसे जाते, 


ये केसा दिन आया देखो, 

खुद भि समझ ना पाया देखो, 

कहा है जाना क्या करना है, 

अब तक समझ ना पाया देखो, 

जीवन के इस रंग मंच पर, 

अपना पात्र निभाया देखो, 


मन चंचल को माना लिया है, 

उसको सब कुछ बता दिया है, 

संभव ना है पिछे जाना, 

सोर्य है आगे बढ़ते जाना, 

बीते कल मे क्या रखा है, 

आने वाला ही सच्चा है, 

जंग अभी बहुत बाकी है, 

पिछ्ला तो यादे काफ़ी है,  

पिछला तो यादे काफ़ी है. 


पंकज